तेरे वज़ूद की लयकारी में रमा हो गये,
हम खुद से जुदा हुए तो खुदा हो गये।
भटके दर-ब-दर, सुकूं की ख़ातिर!
हम बदली अदाओं वाले महताब हो गए।

सुना है तकल्लुफ बहुत करते हैं वो अब-
जो कभी मयखानों में लम-लेट रहा करते थे,
हमारी खामोशी को हुनर समझे वो,
जो नए तरानों में आहें भरा करते थे।

मैं बेतरदीप ज़िन्द गुजार लेता?
अगर कोई राह, नहीं कुचलता मेरी।
मैं मंज़िलो को कह देता अलविदा?
अगर कोई रात, नहीं उजाड़ता मेरी।

अब तू देख मंज़र कैसे बदलता है।
तेरी जुस्तजू की खातिर रुआब कैसे बदलता है।
संग तू है मेरे, ये नही मालूम लेकिन-
अब तक सो रहे थे हम, आज शिताब हो गये।